Maa Shailputri ki Pujavidhi, आरती, से लेकर पढ़िये पूरी जानकारी

Navratri के पहले दिन से दुर्गा मां के नौ रुपों की पूजा की जाती है। पहले दिन Shailputri देवी की पूजा की जाती है। Shailputri पर्वतराज Himalaya की पुत्री हैं इसलिये उनकी नाम शैलपुत्री पड़ा। इनकी आराधना से हम सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। मां शैलपुत्री का प्रसन्न करने के लिए यह ध्यान मंत्र जपना चाहिए। इसके प्रभाव से माता जल्दी ही प्रसन्न होती हैं और भक्त की सभी कामनाएं पूर्ण करती हैं। इनका शुभ रंग पीला है।

नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना की होती है। इस दिन मां शैलपुत्री की उपासना करने से व्यक्ति को धन-धान्य, ऐश्वर्य, सौभाग्य तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में बताया गया है कि नवरात्र के पहले दिन देवी के शरीर में लेपन के तौर पर लगाने के लिए चंदन और केश धोने के लिए त्रिफला चढ़ाना चाहिए । त्रिफला में आंवला, हर्रड़ और बहेड़ा डाला जाता है। इससे देवी मां प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाए रखती है। मां शैलपुत्री चंद्रमा को दर्शाती हैं और इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त हो जाते हैं।

शैल का अर्थ – पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। पार्वती के रूप में इन्हें भगवान शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है।

नवरात्रि आते ही गरबा, डांडिया नृत्य की धूम काफी हो जाती है। नवरात्रि गरबा गुजरात सहित अन्य प्रदेशों में भी काफी फेमस है। गरबा डांडिया को गुजराती लोग रास डांडिया (Raas Dandiya) कहते हैं, जो कि राज्य का सबसे लोकप्रिय डांस हैं। इस डांस में लकड़ी की दो छड़ियों का प्रयोग किया जाता है। डांस में महिलाएं और पुरुष एक विशेष वेशभूषा में तैयार होते हैं। पहले यह डांस सिर्फ गुजरात में ही मनाया जाता था लेकिन अब संपूर्ण भारत का हिस्सा है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि
मां शैलपुत्री की पूजा विधि

मां शैलपुत्री की पूजा विधि (How to worship Shailputri in Navratri)

Maa Shailputri ki puja vidhi ya Maa Shailputri ki puja kaise kare –

– मां शैलपुत्री की पूजा विधि में मां शैलपुत्री की पूजा के लिए उनकी तस्वीर या फिर प्रतिमा की स्थापित करके पूजा की जाती है।
– इसके बाद कलश स्थापना करें। फिर अखंड ज्योति जला लें।
– अब देवी मां के इस मंत्र से उनकी उपासना करनी चाहिए। मंत्र है- ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:।’
– सफेद फूलों की माला अर्पित करें।
– खीर या किसी सफेद चीज का भोग लगाए।
– मां शैलपुत्री को घी अर्पित करें। मान्‍यता है कि ऐसा करने से आरोग्‍य मिलता है।
– नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री का ध्‍यान मंत्र पढ़ने के बाद स्तोत्र पाठ और कवच पढ़ना चाहिए।
– इसके बाद चालीसा करें और मां की आरती कर लें।

मां शैलपुत्री के मंत्र (Shailputri worship mantra)

1. ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
2. वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
3. वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
4. या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥ मां

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मां शैलपुत्री की कथा (Shailputri worship katha)

एक बार प्रजापति ने यज्ञ किया। इस यज्ञ प्रजापति मे सारे देवताओं को निमंत्रित किया। लेकिन उन्होंने भगवान शंकर को निमंत्रित नहीं किया। जबकि सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल थी लेकिन भगवान शिव ने उन्हें मना किया।

शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। लेकिन सती के बार बार कहने पर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की आज्ञा दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव थे।

दक्ष ने उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को दुख पहुंचा। वे अपने पति का अपमान सह न सकीं। इस वजह से योगाग्नि द्वारा खुद को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। अगले जन्म में यही सती शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।

पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

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मां शैलपुत्री के पूजा का महत्व (Importance of Shailputri worship)

मां शैलपुत्री का जन्म पत्थर से हुआ है इसलिए इनकी पूजा से जीवन में स्थिरता आती है। माता शैलपुत्री की विधिवत आराधना से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। घर में खुशहाली आती है। इनकी अर्चना से मूलाधार चक्र जागृत होते हैं जो अत्यन्त शुभ होता है। साथ ही नवरात्र के प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा से चन्द्रमा से जुड़े सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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मां शैलपुत्री की आरती (Shailputri Aarti)

शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

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