Maa Kushmanda ki Pujavidhi: रोगों से मुक्ति के लिये करें मां कुष्मांडा की पूजा, दें कुम्हड़े की बलि

नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। Maa Kushmanda भगवान सूर्य की तरह तेज है। इस दिन उपासक का मन अनाहत चक्र में उपस्थित रहता है। यह मान्यता है कि जो Mata Kushmanda की पूजा करता है उसके सभी रोग, शोक नष्‍ट हो जाते हैं। मां कुष्मांडा की पूजा से समस्त कष्टों, दुखों और विपदाओं का नाश होता है। मां कूष्मांडा को लाल रंग के फूल बहुत प्रिय हैं। इसलिये उन्हे मुख्य रुप से गुड़हल का फूल अवश्य चढ़ाया जाता है। इससे मां कूष्मांडा प्रसन्न होती हैं और भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। आइए जानते हैं नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्मांडा की पूजा विधि, मंत्र, पूजा मुहूर्त, महत्व आदि के बारे में।

मां कुष्मांडा का रुप – Kushmanda Mata kaun hai or Navratri ke chauthe din kis devi ki puja ki jati hai

नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि मां दुर्गा ने असुरों का संहार करने के लिए कूष्मांडा स्वरूप धारण किया था। ब्रह्माण्ड का जन्म देने वाली मां कुष्माण्डा ही हैं। माता सूर्यमंडल के मध्य में रहती है। माता सूर्य को नियंत्रित करती हैं। मां के शरीर की कांति सूर्य के समान ही तेज है। इसलिए इन्हें दैदिप्यमान भी कहा जाता है। संस्कृति में कुम्हड़े को कूष्मांडा कहा जाता है, ऐसे देवा का नाम कूष्मांडा पड़ा। देवी को कुम्हड़े की बली दी जाती है। इनकी 8 भुजाएं हैं, इसलिए इनको अष्टभुजा भी कहा जाता है। ये अपनी भुजाओं में कमल, कमंडल, अमृत कलश, धनुष, बाण, चक्र और गदा धारण करती हैं। वहीं, एक भुजा में माला धारण करती हैं और सिंह की सवारी करती हैं।

 maa kushmanda ka mantra

मां कुष्माण्डा की पूजा मंत्र (Maa Kushmanda Ke Mantra)

  1. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
  2. वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
    सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥

3. सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्मा याम कुष्मांडा शुभदास्तु मे।।

  1. सर्व स्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
    भयेभ्य्स्त्राहि नो देवि कूष्माण्डेति मनोस्तुते।।
  2. ओम देवी कूष्माण्डायै नमः॥

मां कूष्मांडा बीज मंत्र

ऐं ह्री देव्यै नम:।

ॐ कूष्माण्डायै नम:।।

प्रार्थना

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

Maa Kushmanda Ki Puja ka Mahatva
Maa Kushmanda Ki Puja ka Mahatva

मां कूष्मांडा की पूजा का महत्व (Importance Of Maa Kushmanda Worship)

दुखों, ​विपदाओं और कष्टों से परेशान व्यक्ति को मां कूष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। इससे भक्त पर मां की कृपा बनी रहेगी और सभी कष्ट दूर होंगे। मां कुष्माण्डा की पूजा करने से मनुष्य को सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। इसके साथ ही मां की पूजा से आयु, यश और बल भी प्राप्त होते हैं। मां की वर मुद्रा मनुष्य को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। मां कुष्माण्डा की पूजा नवरात्र के चौथे दिन की जाती है। इस दिन मां की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्टों का अंत होता है और मनुष्य को अपने जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है। मां की पूजा का मनुष्य के जीवन में बहुत अधिक महत्व है।

Maa Kushmanda ki pujavidhi
Maa Kushmanda ki pujavidhi

मां कुष्मांडा की पूजा विधि (Maa Kushmanda ki Puja Vidhi)

  • नवरात्रि में पहले दिन कलश स्थापना हो जाती है इसलिये आपको सीधे पूजा करना है।
  • सबसे पहले सुबह उठकर स्नान ध्यान कर लें।
  • इसके बाद मां कूष्मांडा का ध्यान करें।
  • फिर धूप, गंध, अक्षत्, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें। सफेद कुम्‍हड़े यानी समूचे पेठे के फल की बलि दें।
    ब्रह्मांड को कुम्‍हरे के समान माना जाता है, जो कि बीच में खाली होता है। देवी ब्रह्मांड के मध्‍य में निवास करती हैं और पूरे संसार की रक्षा करती हैं। अगर
    आपको साबुत कुम्‍हरा न मिल पाए तो आप मां को पेठे का भी भोग लगा सकते हैं।
  • इसके बाद देवी को दही और हलवे का भोग लगाएं। फिर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण कर सकते हैं।
  • इस दिन हरे रंग के वस्र पहनें।
  • फिर आरती करें।
  • इसके बाद अगर आप व्रत हैं तो व्रत वाला खाना खाएं नहीं तो जो आप खाना चाहते हैं वह खा सकते हैं।
  • नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा होती है।
  • फिर नौवें दिन कन्या पूजन करके व्रत सम्पन्न किया जाता है।
Maa Kushmanda Ki Aarti
Maa Kushmanda Ki Aarti

मां कुष्मांडा की आरती (Maa Kushmanda Ki Aarti)

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

यह भी पढ़ें – नवरात्रि मूर्ति विसर्जन कब है, जानिये चौकी हटाने व विसर्जन की विधि

माँ दुर्गा के 9 रूप

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री

यह भी पढ़ें – Durga Puja: कैसे हुई दुर्गा पूजा की शुरुआत, क्या है इसका इतिहास?

Leave a Reply